कहानी संग्रह >> हर्ता कुँवर का वसीयतनामा हर्ता कुँवर का वसीयतनामाशाश्वत राग
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शाश्वत राग की भावप्रधान कहानियों का संग्रह
‘हर्ता कुँवर का वसीयतनामा’ संग्रह की कहानियाँ शाश्वत राग की भावप्रधान कहानियाँ हैं। ‘भाव प्रधान’ का अर्थ ‘भावुकता’ नहीं है। प्रेम महाभाव है जो अपने विविध रूपों में इन कहानियों में लबालब भरा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रेम और करुणा को मनुष्यता का रक्षक भाव कहा था। इन कहानियों का सूत्रधार इसका साक्ष्य प्रस्तुत करता है। इन कहानियों में एक परिमार्जित भाषा का सौष्ठव है जिसमें शब्द अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ्य के साथ उसी प्रकार उपस्थित हैं जैसे कि वे कविता में होते हैं।
बहुभाषी कहानीकार ने हिन्दी, अंग्रेज़ी, बांग्ला, असमी और लोकभाषा अवधी का सधा हुआ इस्तेमाल किया है। उसके कहने का अन्दाज़ और सलीका सुरुचिपूर्ण है। शब्दों में रूप और घटना तथा स्थितियों को मूर्त कर देने में वह पूरी तरह सक्षम है। चरित्रों के मनोवैज्ञानिक ऊहापोह और स्त्री-पुरुष मनोविज्ञान की जटिलता को वह बड़ी गहराई में पकड़ता है। उसके चरित्रों में मानवीय पीड़ा और अवसाद का गाढ़ा रंग झलकता है। संवेदनशील कला-मूल्यों के प्रति समर्पित पात्रों तथा सतह पर जी रहे समाज की जीवन-दृष्टियों में परस्पर द्वन्द्व की स्थिति इन कहानियों में लक्षित की जा सकती है। यद्यपि इन कहानियों में आभिजात्य जीवन-प्रसंग ज़्यादा हैं पर संकेतों में अपने समय की कुरूप और अनगढ़ यथार्थ भी कम नहीं है।
एक और विशेषता जो रेखांकित करने की है, वह है इन कहानियों में पूर्वोतर राज्यों के निर्वासित और आदिवासियों का जीवन। एक लम्बे समय से कहानीकार उनके निकट साहचर्य में है, अतः उनके जीवन-यथार्थ, जीवन-दर्शन, परिवेश और उनके मनोजगत् से उसका परिचय है। भारत के इस संवेदनशील पूर्वोत्तर क्षेत्र के जन-जीवन का प्रायः शोषण ही हुआ है जिसकी परिणति उसकी विद्रोही गतिविधियों में हो रही है। इस संग्रह की कई कहानियाँ इस तथ्य को उजागर करती हैं।
मुझे विश्वास है, अपने परिवेश और चरित्रों को गहरी संवेदनशीलता से चित्रित करने वाले कहानीकार प्रो. उदयभानु पांडेय की ये कहानियाँ पाठकों को प्रीतिकर लगेंगी।
बहुभाषी कहानीकार ने हिन्दी, अंग्रेज़ी, बांग्ला, असमी और लोकभाषा अवधी का सधा हुआ इस्तेमाल किया है। उसके कहने का अन्दाज़ और सलीका सुरुचिपूर्ण है। शब्दों में रूप और घटना तथा स्थितियों को मूर्त कर देने में वह पूरी तरह सक्षम है। चरित्रों के मनोवैज्ञानिक ऊहापोह और स्त्री-पुरुष मनोविज्ञान की जटिलता को वह बड़ी गहराई में पकड़ता है। उसके चरित्रों में मानवीय पीड़ा और अवसाद का गाढ़ा रंग झलकता है। संवेदनशील कला-मूल्यों के प्रति समर्पित पात्रों तथा सतह पर जी रहे समाज की जीवन-दृष्टियों में परस्पर द्वन्द्व की स्थिति इन कहानियों में लक्षित की जा सकती है। यद्यपि इन कहानियों में आभिजात्य जीवन-प्रसंग ज़्यादा हैं पर संकेतों में अपने समय की कुरूप और अनगढ़ यथार्थ भी कम नहीं है।
एक और विशेषता जो रेखांकित करने की है, वह है इन कहानियों में पूर्वोतर राज्यों के निर्वासित और आदिवासियों का जीवन। एक लम्बे समय से कहानीकार उनके निकट साहचर्य में है, अतः उनके जीवन-यथार्थ, जीवन-दर्शन, परिवेश और उनके मनोजगत् से उसका परिचय है। भारत के इस संवेदनशील पूर्वोत्तर क्षेत्र के जन-जीवन का प्रायः शोषण ही हुआ है जिसकी परिणति उसकी विद्रोही गतिविधियों में हो रही है। इस संग्रह की कई कहानियाँ इस तथ्य को उजागर करती हैं।
मुझे विश्वास है, अपने परिवेश और चरित्रों को गहरी संवेदनशीलता से चित्रित करने वाले कहानीकार प्रो. उदयभानु पांडेय की ये कहानियाँ पाठकों को प्रीतिकर लगेंगी।
-विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
उदयभानु पांडेय का जीवन परिचय
1945 में कतवरिया, बलरामपुर (उ.प्र.) में जन्म। डिफू (स्नातकोत्तर) गवर्नमेंट कॉलेज से प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त।
अब तक हिन्दी एवं अँग्रेज़ी में कहानी, उपन्यास, अनुवाद एवं निबन्ध की उनकी नौ कृतियाँ प्रकाशित, जिनमें दो उपन्यास तथा दो कहानी-संग्रह हिन्दी में हैं। सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।
अब तक हिन्दी एवं अँग्रेज़ी में कहानी, उपन्यास, अनुवाद एवं निबन्ध की उनकी नौ कृतियाँ प्रकाशित, जिनमें दो उपन्यास तथा दो कहानी-संग्रह हिन्दी में हैं। सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।
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